यूपी की राजनीति और लोहिया-आंबेडकररू एक तुलनात्मक अध्ययन

डॉ. केशरी नन्दन मिश्रा

Abstract


बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर और राममनोहर लोहिया ये दो नाम भारतीय राजनीति में कई मायने में एक-सी तासीर रखते हैं। जीवनकाल में इन दोनों को सीमित राजनीतिक सफलताएं मिलीं। बाबा साहब लोकसभा चुनाव कभी नहीं जीत पाए। लोहिया भी सिर्फ एक बार सासंद बन पाए। दोनों को सत्ता में होने का मौका या तो नहीं मिला या बेहद सीमित मौका मिला। दोनों ही दरअसल चिरंतन प्रतिपक्ष रहे। यह प्रतिपक्ष सिर्फ राजनीति में नहीं, बल्कि भारतीय समाज के स्तर पर भी रहा। ये दोनों नेता मरने के बाद और ज्यादा प्रासंगिक होते चले गये और आज भारतीय राजनीति की कोई भी चर्चा इनको केंद्र में रखे बिना नहीं हो सकती। जहां आंबेडकरवाद की सर्वव्यापी चर्चा है, वहीं लोहियावादी धारा का खासकर उत्तर भारतीय राजनीति पर गहरा असर रहा है। लोहियावाद ने पिछड़ी और मझोली जातियों को सत्ता के केन्द्र में लाकर भारतीय समाज और राजनीति को लोकतांत्रिक बनाया है। खुद को आंबेडकरवादी और लोहियावादी कहने वाली पार्टियां ने उत्तर भारत के दो बड़ो राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति पर या तो राज किया, या प्रमुख विपक्ष की भूमिका निभाई है। कई और राज्यों में भी इनका असर है।

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