पचपन खम्बे लाल दीवारे’ में नारी चेतना
Abstract
उषा प्रियवंदा की गणना हिन्दी के उन कथाकारों में होती हैं जिन्होंने आधुनिक जीवन की ऊब,छटपटाहट, संत्रास और अकेलेपन की स्थिति को स्वयं अनुभव द्वारा व्यक्त कियाहै। यही कारण है कि उनकी रचनाओं में नारी जीवन के विभिन्न पहलुओं का संजीव व मार्मिक चित्रण हुआ है। ‘पचपन खम्बे लाल दीवारें’ उषा प्रियंवदा का पहला उपन्यास है। इसमें भारतीय नारी-जीवन के एक लगभग अछूते पहलू पर प्रकाश डाला गया है। इसमें नारी की सामाजिक-आर्थिक विवशताओं से जन्मी मानसिक यंत्रणा का बड़ा ही मार्मिक चित्रण हुआ है। छात्रावास के पचपन खम्बे और लाल दीवारें उन परिस्थितियों के प्रतीक हैं जिनमें रहकर सुषमा को ऊब तथा घुटन का एहसास होता है, लेकिन वह उससे मुक्त नहीं हो पाती, शायद इन परिस्थितियों के बीच जीना ही उसकी नियति है।
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