आधुनिकता के दौर में बदलती युवा मानसिकता और नैतिक मूल्यों का विघटन
Abstract
मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में होता है। युवावस्था एक ऐसी ही अवस्था है जिसमें व्यक्तित्व का विकास पूर्णता की सीमा लगभग प्राप्त करता है। मनुष्य जीवन में युवावस्था का अपना ही एक अलग महत्व होता है। उसके महत्व का उल्लेख करते हुए किसी ने उसे स्वर्णकाल कहा तो किसी ने उत्कर्ष काल और किसी ने बसंत काल की संज्ञा दी है। नये विचार और नया ज्ञान ग्रहण करने और उसे आत्मसात् करने के लिए इस आयु का मन अत्यधिक ग्राह्य होता है।
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