संत साहित्य में नैतिक मूल्य
Abstract
शोध सार आलेख- पक्रृति कवि सुमित्रानंदन पतं जी के प्रकृति के आलिगंन में आबद्ध हाकेर नारी के रुप वैभव को भी ठुकरा दिया विश्व केनव जाने कितने कवियो ंने प्रकृति का चित्रण अपने काव्य मे ंकिया है। किन्तु प्रकृति के प्रति जैसा गहरा अनुराग इस महाकवि का परिलक्षित हुआ है वैसा हमें किसी अन्य में दृष्टिगोचर नहीं होता। प्रकित उनक ेलिए काव्य की वस्तु और उनकी साज-सज्जा का साधन ही नहीं, अपति उनकी काव्य प्रेरणा का स्त्रोत भी रही है। उन्हांन ेस्पष्ट शब्दो ंमें स्वीकार किया है कविता करने की प्रेरणा मुझे सबसे पहल ेप्रकृति निरीक्षण से मिली है। जिसका श्रेय मेरी जन्म-भूमि कुर्माचल प्रदेश को है। कवि जीवन से पहले भी मुझ ेयाद है, मैं घण्टो ंएकान्त में बैठा, प्राकृतिक दृश्यां को एक टक देखा करता था और कोई अज्ञात आकर्षण मेरे भीतर एक अव्यक्त सौंदर्य का जाल बुनकर मेरी चेतना को तन्मय कर देता था। जब कभी मैं आंखे मूदंकर लेटता था तो वह दृश्यपट चुपचाप मेरी आख्ांं के सामने घुमा करता था और यह शायद पवर्त-पा्रन्त के वातावरण ही का प्रभाव है कि मेरे भीतर विश्व और जीन्स के प्रति एक गम्भीर आश्चर्य की भावना, पवर्त की तरह निश्चय रूप में अवस्थित है।
Full Text:
PDFCopyright (c) 2017 Edupedia Publications Pvt Ltd
![Creative Commons License](http://licensebuttons.net/l/by-nc-sa/4.0/88x31.png)
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.
All published Articles are Open Access at https://journals.pen2print.org/index.php/ijr/
Paper submission: ijr@pen2print.org