प्रकृति के कुशल चितेरे पंतजी

कविता कुमारी

Abstract


संत काव्यधारा के दार्शनिक - सांस्कृतिक आधार अनेक है। जिनमें से प्रमुख रुपेण उल्लेखनीय है- उपनिषद, शंकराचार्य का अद्वैतदर्शन नाथ पंथ, इस्लाम धर्म तथा सुफी दर्शन। संत शब्द का नाम आते ही हमारे मन में एक साफ-सुथरी व मनमोहक छवि आती है। श्री पीताम्बरदत बडथ्वाल ने संत शब्द की व्युत्पति शांत शब्द से मानी है। श्री परशुराम चतुर्वेदी लिखते है कि संत शब्द उस व्यक्ति की और संकेत करता है। जिसने संत रुपी परम तत्व का अनुभव कर लिया हो और इस प्रकार अपने व्यक्तित्व से उपर उठकर उसके साथ तद्रुप हो गया है। जो संत अवरुप नित्य सिद्ध वस्तु का साक्षात्कार कर चुका हो वहीं संत है। संत साहित्य भावात्मक एवं अनुभूति प्रवण है उसमें किसी शास्त्र अथवा सिद्धान्त के प्रति अग्रह व्यक्त नहीं हुआ है संत साहित्य के सभी संत कवि साधनविहिन वातावरण में उत्पन्न हुए तथा वे भाषा, व्याकरण आदि के अनुशीलन से वंचित रहे। इसलिए उनके काव्य भाषा में परिषकार, परिमार्जन, परिनिष्ठता और साहित्यिकता नहीं है। परन्तु उनके काव्य में नैतिक मूल्यों का निरुपण, सत्य का विवेचन एवं सत्य का प्रचार प्रसार उनकी कविता का मूल लक्ष्य था। उनका ध्यान न काव्य सौष्ठव की और थासंत काव्यधारा के दार्शनिक - सांस्कृतिक आधार अनेक है। जिनमें से प्रमुख रुपेण उल्लेखनीय है- उपनिषद, शंकराचार्य का अद्वैतदर्शन नाथ पंथ, इस्लाम धर्म तथा सुफी दर्शन। संत शब्द का नाम आते ही हमारे मन में एक साफ-सुथरी व मनमोहक छवि आती है। श्री पीताम्बरदत बडथ्वाल ने संत शब्द की व्युत्पति शांत शब्द से मानी है। श्री परशुराम चतुर्वेदी लिखते है कि संत शब्द उस व्यक्ति की और संकेत करता है। जिसने संत रुपी परम तत्व का अनुभव कर लिया हो और इस प्रकार अपने व्यक्तित्व से उपर उठकर उसके साथ तद्रुप हो गया है। जो संत अवरुप नित्य सिद्ध वस्तु का साक्षात्कार कर चुका हो वहीं संत है। संत साहित्य भावात्मक एवं अनुभूति प्रवण है उसमें किसी शास्त्र अथवा सिद्धान्त के प्रति अग्रह व्यक्त नहीं हुआ है संत साहित्य के सभी संत कवि साधनविहिन वातावरण में उत्पन्न हुए तथा वे भाषा, व्याकरण आदि के अनुशीलन से वंचित रहे। इसलिए उनके काव्य भाषा में परिषकार, परिमार्जन, परिनिष्ठता और साहित्यिकता नहीं है। परन्तु उनके काव्य में नैतिक मूल्यों का निरुपण, सत्य का विवेचन एवं सत्य का प्रचार प्रसार उनकी कविता का मूल लक्ष्य था। उनका ध्यान न काव्य सौष्ठव की और था

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