भारत में प्राकृतिक-चिकित्सा विज्ञान एवं रोग निदानः एक अध्ययन
Abstract
‘‘यह बात सत्य है कि प्रकृति मनुष्य का सबसे घनिष्ठ मित्र है। जो व्यक्ति के सम्पर्क में रहता है, रोग उसे छू भी नहीं सकता। आधुनिक युग में मानवीय क्रियाऐं प्राकृतिक पर्यावरण को विनाश के मार्ग पर ले जा रही हैं। यही कारण है कि मनुष्य प्रकृति से जितना दूर जा रहा है, बीमारियॉ उतनी ही मनुष्य के निकट आ रही हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखकर पर्यावरणविदों तथा प्रकृति प्रेमियों ने प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार मनुष्य के रोगों के समाधान की अनेकों तकनीक सुझाई हैं, जिनमें प्रकृति के निकट रहना भी उनमें शामिल है। अनेकों विदेशी कवियों व साहित्यकारों ने भी प्रकृति और मनुष्य के शाश्वत सम्बधों पर अनेक रचनाऐं लिखी हैं। उदाहरण के तौर पर विलियम वर्डसवर्थ (ब्रिटिश कवि) की अधिकांश कविताऐं मनुष्य को प्रकृति की तरफ लौटने का संदेश देती हैं। इसके पीछे मुख्य तथ्य यह है कि प्राकृतिक वातावरण में रहने वाले लोगों को बीमारियॉ कम लगती हैं। परन्तु आधुनिकीकरण की अंधाधुंध दौड़ ने मानव जाति को प्रकृति का शत्रु बना दिया है। इसीलिए आज यह समय की अपरिहार्य आवश्यकता है कि हम प्रकृति की गोद में रहकर स्वयं को स्वस्थ रखें और यदि किसी कारणवश रोग हो भी जाए तो प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का अनुसरण करें ताकि हमारा शरीर रोग मुक्त हो सके। अतः प्रस्तुत शोध-पत्र का उद्देश्य प्राकृतिक-चिकित्सा विज्ञान की रोगों के निदान में भूमिका का आकंलन प्रस्तुत करना है।’’’
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