राष्ट्रीय एकीकरण और अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद

मलखान सिंह

Abstract


भारत ने ऐसे राज्य को विरासत में पाया जो ब्रिटिश भारतीय प्रान्तों तथा बड़ी संख्या में अर्द्ध-स्वायत रियासतों में बंटा हुआ था। कठिनाई उस समय उत्पन्न हुई। जब 565 रियासतों का प्रश्न आया। यद्यपि उनमें से अधिकतर ने (तीन को छोड़कर) संद्यीय भारत में सम्मलित होना स्वीकार कर लिया । ये तीन राज्य जूनागढ़, हैदराबाद तथा कश्मीर थे । हिन्दू बहुल जूनागढ़ काठियावाड़ क्षेत्र का एक छोटा-सा राज्य था । जहां मुस्लिम शासक जिसने पाकिस्तान में शामिल होना स्वीकार कर लिया था। लेकिन भारतीय सेना के छोटे से संघर्ष के बाद शासक पाकिस्तान भाग गए और जूनागढ़ को लोकनिर्णय से भारत में शामिल कर लिया गया । हैदराबाद का शासक निजाम था और वह भी पाकिस्तान में शामिल होने के पक्ष में था । सितम्बर 1948 में भारतीय सेना ने एक ऑपरेशन चलाकर हैदराबाद को भारतीय संघ में मिलवा दिया । लेकिन कश्मीर को संभालना आसान नहीं था । स्वतन्त्रता के पश्चात् कश्मीर के शासक हरिसिंह स्वतन्त्र रहना चाहते थे, जिससे नेहरु के मन्त्रिमण्डल में कोई भी सहमत नहीं था । उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त के पठान कबीलों के आक्रमण के कारण कश्मीरी शासक को सुरक्षा के लिए भारतीय सेना की मदद लेनी पड़ी । इससे ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हुई, जिससे हरिसिंह के पास भारत के साथ अधिग्रहण समझौते के हलावा कोई भी विकल्प नहीं बचा  परंतु लौह पुरुष सरदार पटेल की कुशल नीति के कारण सारी रियासतें भारत में शामिल हो गई। राष्ट्रीय एकीकरण के लिए सम्मेलन का आयोजन किया गया । प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के संयोजन में देहली में विज्ञान भवन में सन् 1962, 28 सतम्बर से 1 अक्तूबर तक राष्ट्रीय एकीकरण सम्मेलन बुलाया गया ।  लेकिन राष्ट्रीय एकीकरण की समस्या अभी भी बनी हुई ।

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