भारतीय संस्कृति में समन्वयवाद
Abstract
भारतीय संस्कृति विश्वभर की संस्कृतियों मैं समन्वयवाद की दृष्टि से सभी संस्कृतियों की जनक हैं। संस्कृति का आधार धर्म होता है और धर्म का मूल वेद है ‘वेदोऽखिलो धर्ममूलम्। वेदों में मनुष्य के धर्म को जितने सुंदर और सरल शब्दों में उपस्थापित किया गया है वैसा विश्वभर के किसी भी साहित्य में दुर्लभ है। ऋग्वेद के अनेक मंत्र समन्वयवाद के पोषक हैं जो कालांतर में भारतीय संस्कृति के आधार स्तंभ बने हैं। वैदिक ऋषि मानवीय सभ्यता के पोषण के काल में सब को सचेत करता है कि हे मनुष्यों तुम्हें साथ-साथ चलना है सबके साथ समान व्यवहार करना है सब के अनुकूल वाणी बोलना है सब के अनुकूल आचरण करना है कोई ऐसा आचरण नहीं करना जिससे किसी भी व्यक्ति को तनिक भी कठिनाई या समस्या या दुःख उत्पन्न हो, इस सार्वभौमिक विचारधारा का पोषण करने वाले भारतीय संस्कृति की आत्मा कहे जाने वाले वेद विश्वभर की संस्कृतियों के लिए धरोहर हैं और सभी संस्कृतियों की आत्मा भी हैं।
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